2017

जो देखे वही हैरान हो जाए
दुश्मन भी तेरा कद्रदान हो जाए
आग बन जाए गुलिस्तां यहां
गर कामिल तेरा ईमान हो जाए
इतना भी अकेला न रहना कभी
के खाली दिल का मकान हो जाए
बोझिल लगने लगती हैं ये साँसें
ज़िन्दगी जब इम्तिहान हो जाए
सुनता नहीं वो फिर किसी की
जब दिल यह बेईमान हो जाए
अल्फ़ाज़ कहो न उर्दू में कुछ
शहद सी यह जुबान हो जाए



होंसला कम न होगा honsala kam na hoga


होंसला कम न होगा,तेरा तुफानोके सामने,

मेहनत को इबादत में बदल करतो देख,

खुद वे खुद हल होगीजिन्दगी की मुश्किले


बस ख़ामोशी को सवालो मेंबदल कर तो देख



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Ram Rana
manuhathrasi Lord Krishna

ज़िन्दगी तेरे दर पे
बेज़ार से खड़े हम 
आज तो दीदार की कसक 
कम से कम पूरी कर दे 
               कदम लड़खड़ाये से है 
               होश भी गुम है 
                  अब तो झलक दिखला दे
                 मुझे गुलज़ार कर दे


बन्दा सिंह बहादुर एक वीर सिक्ख राजपूत यौद्धा



एक इतिहासजो भुला दिया गया” सीरीज की नयी पोस्टजिसे पढ़ कर आपको गर्व महसूस होगा और सच्चाई का पता चलेगा. 
बन्दा सिंह बहादुर एक वीर सिक्ख राजपूत यौद्धा

कहानी एक राजपूत वीर की जिसने प्रथम सिख साम्राज्य की नीव रखी एक योद्धा जिसने मुगलों को हराया, एक योद्धा जिसने सिखों का नाम बढ़ाया, .ये पंजाब के पहले ऐसे सेनापति थे जिन्होंने मुगलो के अजय होने का भ्रम तोडा, उस शूरवीर की पूरी कहानी आज हम आपको बताएंगे, कहानीबाबा बंदा सिंह बहादुर की।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अठारहवीं शताब्दी के शुरु में ही हुई दो लड़ाइयाँ अपना ऐतिहासिक महत्व रखती हैं । इन दोनों लड़ाईयों ने पश्चिमोत्तर भारत में विदेशी मुग़ल वंश के कफ़न में कील का काम किया । ये लडाईयां थीं पंजाब में सरहिन्द और गुरदास नंगल की लडाई । इन दोनों लड़ाईयों का नेतृत्व बंदा सिंह बहादुर ने किया । बंदा सिंह बहादुर को इस संग्राम के लिए गुरु गोविन्द सिंह ने तैयार किया था.
बाबा बन्दा सिंह बहादुर का जन्म कश्मीर स्थित पुंछ जिले के राजौरी क्षेत्र में 1670ई. तदनुसार विक्रम संवत् 1727,कार्तिक शुक्ल 13को हुआ था। आपका राजपूतों के (मिन्हास) भारद्वाज गोत्र से सम्बद्ध था और वास्तविक नाम लक्ष्मणदेव(लछमनदासथा। आपके पिता रामदेव राजपूत डोगरे, स्थानीयजमींदार थे। जिस कारण आपके पास धन-सम्पदा का अभाव न था। उन्होंने अपने बेटे लछमन दास को रिवाज़ के अनुसार घुड़सवारी, शिकारखेलना, कुश्तियाँआदि के करतब सिखलाए किन्तु शिक्षा पर विशेष ध्यान नहीं दिया। अभी लछमन दास का बचपन समाप्त ही हुआ था और यौवन में पदार्पण ही किया था कि अचानक एक घटना उनके जीवन में असाधारण परिवर्तन ले आई। एक बार उन्होंने एक हिरनी का शिकार किया। जिसके पेट में से दो बच्चे निकले और तड़प कर मर गये। इस घटना ने लछमनदास के मन पर गहरा प्रभाव डाला और वह अशाँत से रहने लगे। मानसिक तनाव से छुटकारा पाने के लिए वह साधु संगत करने लगे।

एक बार जानकी प्रसाद नामक साधु राजौरी में आया। लछमनदास ने उसके समक्ष अपने मन की व्यथा बताई तो जानकी प्रसाद उसे अपने सँग लाहौर नगर के आश्रम में ले आया। और उसने लछमन दास का नाम माधो दास रख दिया। क्योंकि जानकी दास को भय था कि जमींदार रामदेव अपने पुत्र को खोजता यहाँ न आ जाए।

किन्तु लछमन दास अथवा माधो दास के मन का भटकना समाप्त नहीं हुआ। अतः वह शान्ति की खोज में जुटा रहा। लाहौर नगर के निकट कसूर क्षेत्र में सन 1686 ईसवीकी वैसाखी के मेले पर उन्होंने एक और साधु रामदास को अपना गुरू धारण किया और वह उस साधु के साथ दक्षिण भारत की यात्रा पर चले गये। बहुत से तीर्थों की यात्रा की किन्तु शाश्वत ज्ञान कहीं प्राप्त न हुआ।
इस बीच पँचवटी में उसकी मुलाकात एक योगी औघड़नाथ के साथ हुई। यह योगी ऋद्धियों-सिद्धियों तथा ताँत्रिक विद्या जानने के कारण बहुत प्रसिद्ध था। तँत्र-मँत्र तथा योग विद्या सीखने की भावना से माधोदास ने इस योगी की खूब सेवा की। जिससे प्रसन्न होकर औघड़ नाथ ने योग की गूढ़ साधनाएँ व जादू के भेद उसको सिखा दिये। योगी की मृत्यु के पश्चात् माधेदास ने गोदावरी नदी के तट पर नांदेड़ नगर में एक रमणीक स्थल पर अपना नया आश्रम बनाया।
इधर गुरुगोविन्द सिंह जी की मुगलो से पराजय हुयी और उनके दो सात और नौ वर्ष के शिशुओं की नृशंस हत्या कर दी गयी इससे विचलित होकर वे दक्षिण की और चले गए 3सितंबर, 1708 ई. को नान्देड में सिक्खों के दसवें गुरु गुरु गोबिन्द सिंह ने इस आश्रम को देखा और वह वो लक्ष्मण देव (बंदा बहादुर) से मिले और उन्हें अपने साथ चले के लिए कहा और उपदेश दिया की

राजपूत अगर सन्याशी बनेगा तो देश धर्म को कौन बचाएगा राजपूत का पहला कर्तव्य रक्षा करना है” गुरुजी ने उन्हें उपदेश दिया अनाथ अबलाये तुमसे रक्षा की आशा करती है, गो माता मलेछों की छुरियो क़े नीचे तडपती हुई तुम्हारी तरफ देख रही है, हमारे मंदिर ध्वस्त किये जा रहे है, यहाँ किस धर्म की आराधना कर रहे हो तुम एक बीर अचूक धनुर्धर, इस धर्म पर आयी आपत्ति काल में राज्य छोड़कर तपस्वी हो जाय??”

पंजाब में सिक्खों की दारुण यातना तथा गुरु गोबिन्द सिंह के सात और नौ वर्ष के शिशुओं की नृशंस हत्या ने लक्ष्मण देव जी को अत्यन्त विचलित कर दिया। गुरु गोबिन्द सिंह के आदेश से ही वह पंजाब आये, गुरु गोविन्द सिंह ने स्वयं उन्हें अपनी तलवार प्रदान की गुरु गोविन्द सिंह ने उन्हें नया नाम बंदा सिंह बहादुर दिया और लक्ष्मण देव हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए सिख धरम में दीक्षित हुए.

छद्म वेशी तुर्कों ने धोखे से गुरुगोविन्द सिंह की हत्या करायी, बन्दा को पंजाब पहुचने में लगभग चार माह लग गया सभी शिक्खो में यह प्रचार हो गया की गुरु जी ने बन्दा को उनका जत्थेदार यानी सेनानायक बनाकर भेजा है,बंदा के नेत्रत्व में वीर राजपूतो ने पंजाब के किसानो विशेषकर जाटों को अस्त्र शस्त्र चलाना सिखाया,उससे पहले जाट खेती बाड़ी किया करते थे और मुस्लिम जमीदार(मुस्लिम राजपूत)इनका खूब शोषण करते थे,देखते ही देखते सेना गठित हो गयी.
इसके बाद बंदा सिंह का मुगल सत्ता और पंजाब हरियाणा के मुस्लिम जमीदारों पर जोरदार हमला शुरू हो गया। मई, 1710 में उसने सरहिंद को जीत लिया और वहां के नवाब जिसने गुरु गोविन्द सिंह के परिवार पर जुल्म ढाए थे उसे सूली पर लटका दिया,सरहिंद की सुबेदारी सिख राजपूत बाज सिंह पवार को दी गयी,और सतलुज नदी के दक्षिण में सिक्ख राज्य की स्थापना की। उसने खालसा के नाम से शासन भी किया और गुरुओं के नाम के सिक्के चलवाये। बंदा सिंह ने पंजाब हरियाणा के एक बड़े भाग पर अधिकार कर लिया और इसे उत्तर-पूर्व तथा पहाड़ी क्षेत्रों की ओर लाहौर और अमृतसर की सीमा तक विस्तृत किया।बंदा सिंह ने हरियाणा के मुस्लिम राजपूतो(रांघड)का दमन किया और उनके जबर्दस्त आतंक से जाटों को निजात दिलाई.यहाँ मुस्लिम राजपूत जमीदार जाटों को कौला पूजन जैसी घिनोनी प्रथा का पालन करने पर मजबूर करते थे और हरियाणा के कलानौर जैसे कई हिस्सों में आजादी के पहले तक ये घिनोनी प्रथा कायम रही.
बंदा सिंह बहादुर का सहारनपुर पर हमला
यमुना पार कर बन्दा सिंह ने सहारनपुर पर भी हमला किया,सरसावा और चिलकाना अमबैहटा को रोंदते हुए वो ननौता पहुंचा,ननौता में पहले कभी गुज्जर रहते थे जिन्हें मुसलमानों ने भगा कर कब्जा कर लिया था,जब गूजरों ने सुना कि बन्दा सिंह बहादुर नाम के सिख राजपूत बड़ी सेना लेकर आये हैं तो उन्होंने ननौता के मुसलमानों से हिसाब चुकता करने के लिए बंदा सिंह से गुहार लगाई,बन्दा सिंह ने उनकी फरियाद मानते हुए ननौता पर जोरदार हमला कर इसे तहस नहस कर दिया,सैंकड़ो मुस्लिम मारे गए,तब से ननौता का नाम फूटा शहर पड़ गया.
इसके बाद बंदा सिंह ने बेहट के पीरजादा मुस्लमान जो गौकशी के लिए कुख्यात थे उन पर जोरदार हमला कर समूल नष्ट कर दिया,यहाँ के लोकल राजपूतो ने बंदा सिंह बहादुर का साथ दिया.इसके बाद बंदा सिंह ने रूडकी पर भी अधिकार कर लिया………
बन्दा सिंह का जलालाबाद(मुजफरनगर)पर हमला
मुजफरनगर में जलालाबाद पहले राजा मनहर सिंह पुंडीर का राज्य था और इसे मनहर खेडा कहा जाता था। इनका ओरंगजेब से शाकुम्भरी देवी की और सडक बनवाने को लेकर विवाद हुआ।इसके बाद ओरंगजेब के सेनापति जलालुदीन पठान ने हमला किया और एक ब्राह्मण ने किले का दरवाजा खोल दिया। जिसके बाद नरसंहार में सारा राजपरिवार परिवार मारा गया। सिर्फ एक रानी जो गर्भवती थी और उस समय अपने मायके में थी,उसकी संतान से उनका वंश आगे चला और मनहरखेडा रियासत के वंशज आज सहारनपुर के भावसी,भारी गाँव में रहते हैं,इस राज्य पर जलालुदीन ने कब्जा कर इसका नाम जलालाबाद रख दिया।ये किला आज भी शामली रोड पर जलालाबाद में स्थित है।
जलालाबाद के पठानो के उत्पीडन की शिकायत बन्दा सिंह पर गई और कुछ दिन बाद ही इस एरिया के पुंडीर राजपूतो की मदद से जलालाबाद पर बन्दा बहादुर ने हमला किया.20 दिनों तक सिखो और पुंडीर राजपूतो ने किले का घेरा रखा,यह मजबूत किला पूर्व में पुंडीर राजपूतो ने ही बनवाया था ,इस किले के पास ही कृष्णा नदी बहती थी,बंदा बहादुर ने किले पर चढ़ाई के लिए सीढियों का इस्तेमाल किया,किला रक्तरंजित युद्ध में जलाल खान के भतीजे ह्जबर खान,पीर खान,जमाल खान और सैंकड़ो गाजी मारे गए,जलाल खान ने मदद के लिए दिल्ली गुहार लगाई, दुर्भाग्य से उसी वक्त जोरदार बारीश शुरू हो गई,और कृष्णा नदी में बाढ़ आ गई,वहीँ दिल्ली से बहादुर शाह ने दो सेनाएं एक जलालाबाद और दूसरी पंजाब की और भेज दी,पंजाब में बंदा की अनुपस्थिति का फायदा उठा कर मुस्लिम फौजदारो ने हिन्दू सिखों पर भयानक जुल्म शुरू कर दिए,इतिहासकार खजान सिंह के अनुसार इसी कारण बंदा बहादुर और उसकी सेना ने वापस पंजाब लौटने के लिए किले का घेरा समाप्त कर दिया,और जलालुदीन पठान बच गया,
बंदा सिंह बहादुर का दुखद अंत
लगातार बंदा सिंह की विजय यात्रा से मुगल सत्ता कांप उठी,और लगने लगा कि भारत से मुस्लिम शासन को बंदा सिंह उखाड़ फेंकेगा,अब मुगलों ने सिखों के बीच ही फूट डालने की नीति पर काम किया,उसके विरुद्ध अफवाह उड़ाई गई कि बंदा सिंह गुरु बनना चाहता है और वो सिख पंथ की शिक्षाओं का पालन नहीं करता,खुद गुरु गोविन्द सिंह जी की पत्नी से भी बंदा सिंह के विरुद्ध शिकायते की गई,जिसका परिणाम यह हुआ कि ज्यादातर सिख सेना ने उसका साथ छोड़ दिया,जिससे उसकी ताकत कमजोर हो गयी,तब बंदा सिंह ने मुगलों का सामना करने के लिए छोटी जातियों और ब्राह्मणों को भी सैन्य प्रशिक्षण दिया,
1715 ई. के प्रारम्भ में बादशाह फर्रुखसियर की शाही फौज ने अब्दुल समद खाँ के नेतृत्व में उसे गुरुदासपुर जिले के धारीवाल क्षेत्र के निकट गुरुदास नंगल गाँव में कई मास तक घेरे रखा। खाद्य सामग्री के अभाव के कारण उसने 7 दिसम्बर को आत्मसमर्पण कर दिया। फरवरी 1716 को 794 सिक्खों के साथ वह वीर सिख राजपूत दिल्ली लाया गया,उससे कहा गया कि अगर इस्लाम गृहण कर ले तो उसे माफ़ कर दिया जाएगा,मगर उस वीर राजपूत ने ऐसा करने से इनकार कर दिया,जिसके बाद उसके पुत्र का कलेजा निकाल कर बंदा सिंह के मुह में ठूस दिया दिल्ली में आज जहाँ हार्डिंग लाइब्रेरी है,वहाँ 7 मार्च 1716 से प्रतिदिन सौ वीरों की हत्या की जाने लगी।
एक दरबारी मुहम्मद अमीन ने पूछा – तुमने ऐसे बुरे काम क्यों किये, जिससे तुम्हारी यह दुर्दशा हो रही है। बन्दा ने सीना फुलाकर सगर्व उत्तर दिया – मैं तो प्रजा के पीड़ितों को दण्ड देने के लिए परमपिता परमेश्वर के हाथ का शस्त्र था। क्या तुमने सुना नहीं कि जब संसार में दुष्टों की संख्या बढ़ जाती है, तो वह मेरे जैसे किसी सेवक को धरती पर भेजता है।
बन्दा से पूछा गया कि वे कैसी मौत मरना चाहते हैं ? बन्दा ने उत्तर दिया, मैं अब मौत से नहीं डरता; क्योंकि यह शरीर ही दुःख का मूल है। यह सुनकर सब ओर सन्नाटा छा गया। मगर वो सिख यौद्धा बंदा सिंह अविचलित रहा,फिर जल्लादों ने उसके शरीर से मांस की बोटी बोटी नोच कर निकाली,16 जून को बादशाह फर्रुखसियर के आदेश से बन्दा सिंह तथा उसके मुख्य सैन्य-अधिकारियों के शरीर काटकर टुकड़े-टुकड़े कर दिये गये।
बंदा सिंह बहादुर की सैन्य सफलताओं के परिणाम 
बंदा सिंह बहादुर ने थोड़े ही समय में मुगल सत्ता को तहस नहस कर दिया,जिससे दक्षिण भारत से मराठा शक्ति को उत्तर भारत में बढ़ने का मौका मिला,उसके बलिदान ने सिख पंथ को नया जीवनदान दिया,पंजाब में मुगल सत्ता इतनी कमजोर हो गयी कि आगे चलकर सिख मिसलो ने पुरे पंजाब पर अधिकार कर लिया.
बंदा सिंह ने हरयाणा पंजाब में मुस्लिम राजपूतों(रांघड) की ताकत को भी कुचल दिया,जिससे सदियों से उनके जबर्दस्त आतंक में जी रहे और कौला प्रथा जैसी घिनोनी परम्परा निभा रहे जाट किसानो को बहुत लाभ हुआ,बंदा सिंह ने जाट किसानो को सिख पन्थ में लाकर सैन्य प्रशिक्षण देकर मार्शल कौम बना दिया,आज हरियाणा पंजाब में जाटों की जो ताकत दिखाई देती है वो सिख राजपूत यौद्धा बन्दा सिंह बहादुर के बलिदान का ही परिणाम है.अगर बंदा सिंह मुस्लिम राजपूतो की ताकत को खत्म न करता तो बटवारे के समय जाटों की हरियाणा से उन्हें निकालने की हिम्मत नहीं होती.
बन्दा सिंह ने यमुना पार कर सहारनपुर,मुजफरनगर क्षेत्र में भी मुस्लिमो की ताकत को कुचल दिया जिससे इस क्षेत्र में गूजरों को अपनी ताकत बढ़ाने का मौका मिला और आगे चलकर गूजरों ने नजीब खान रूहेला से समझौता कर एक जमीदारी रियासत लंढौरा की स्थापना की.
इस प्रकार हम देखते हैं कि अगर बंदा सिंह बहादुर वो वीर राजपूत था जिसने प्रथम सिख राज्य की नीव रखी,बंदा सिंह के बलिदान का लाभ ही आज पंजाब हरियाणा का जाट समाज उठा रहा है,अगर उसके साथ धोखा न हुआ होता तो देश का इतिहास कुछ और ही होता.
जय राजपूताना——

नोट-यह पोस्ट इतिहासकार खुशवंत सिंह,खजान सिंह,मुगल इतिहासकारों एवं स्थानीय जनश्रुतियों के आधार पर लिखी गयी है.

Banda Bahadur, a Rajput warrior who lead the Khalsa
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कुल्हड़ की चाय

वो कुल्हड़ की चाय, वो जुबान का जलना...
वो तपते की आग में आलुवों का गलना
वो ठंडी फर्श पर उचकते हुए चलना 
वो मम्मी का मेरे हाथों को फूंको में मलना...
वो मटर छीलते हुए चालबाजी करना 
वो मूंगफली के छिलके बहन के सर में भरना...
वो आलू के पराठे, वो लहसुन की चटनी 
वो मोहल्ले का खेल, वो पैरों में फटनी...
वो किटकिटाते हुए मुंह से भापें उड़ाना
वो गोल्डस्टार के जूतों में दौडें लगाना...
वो ऊनी दस्तानों में मोंगिया बन जाना 
वो मफलर घुमाकर टोपियाँ बन जाना...
वो सूरज का शामों में जल्दी सो जाना 
कभी कैसेट के गानों में चुपचाप रो जाना...
वो हाथो पर टीचर के डस्टर की चोटें 
वो दिखावट के सिक्के, वो छुपाई हुई नोटें...
“अब कैलेंडर है ठिठुरे, अब घड़ियाँ में सन्नाटे 
ठंडी थोड़ी कम लगती, दोस्त यार जो होते...
वो सर्दी की शामें, वो लड़कपन की बातें 
अब अलसाती है सुबह, अब सोती कहाँ है रातें...

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